छत्तीासगढ़ी म परथंम धर्म उपदेशक संत गुरू घासीदास

भारतीय इतिहास म 19वीं शताब्दी पुर्नजागरण के काल कहाथे। छत्तीासगढ़ म घलु इही काल के अलग पहिचान मिलथे। इतिहास कार मन के मुताबिक छत्तीिसगढ़ म कलचुरी राज 1000 ई. काल के तीर -तरवार ले सन् 1740 ई.तक माने जाथे। कलचुरी गोड़ राजा रहिस, येखर सेती छत्तीेसगढ़ के गाँव, कस्बा, डोगरी-पहाड़ म बसे लोगन म आज तलक गोड़ संस्कृति देखब म मिलथे। सन् 1740 म नागपुर के मराठा भास्कर पंत अपन सैनिक मन संग जुद्ध म कलचुरी राजा ल हराके सन् 1741म छत्तीासगढ़ ल हथियालिस तहां खुब्बेच लुटपाट अउ अइताचार करीन। छत्ती्सगढ़ हीनहर होगे। मराठा के लुटे ल जउन बांचगे रहिस तेला पिण्डारी डाकू दल लुट नगाके के चलदिन। भइगे ओ बखत छत्तीीसगढ़ लुट के ठउर होगे रहै।




छत्तीासगढ़ म सतपंथी नारनौल (पंजाब प्रान्त) ले आइन। औरंगजेब के अनियांव अउ अधर्मी नीति ले तंगाके सन् 1672 म शक्तिशाली मुगल शासक औरंगजेब से जुद्ध करीन। तोप, बारूद के आगू कहाँ टिकै, सतनामी जोद्धा हारगैं। तहाँ मुगल शासक सत पंथी उपर अति जुलुम करीन। अउ चुन-चुन के मारे बर आदेश दे दिस। का करै ? नारनौल ल छोड़े के सिवाय अउ कोनो रद्दा नई दिखिस। अपन वंश अउ संस्कृति ल बचाये खातीर भारत के आने-आने प्रान्त म बगरगै त कतको सतनामी अपन धरम बदल लिन। छत्तीेसगढ़ के वन गाँव म आके कतको झन शरण पाइन अउ भरूवा काट के बसगै। सतनामी वीर, अउ मेहनती रहिन। खेती-किसानी पुरखौती बेवसाय रहिस। अपन मेहनत, लगन के भरोसा बंजर (परत) भूमि म खेती करत कई ठन गाँव के गौटिया होगे। गुरू घासीदास के पूर्वज म पवित्र दास से मेदनी दास, दुकालदास, सगुनदास, मांहगू दास ले घासीदास के पीढ़़ी (1756 ले 1860) माने जाथे। छतीसगढ़ म सतनामी के संख्या अंगरी गिनऊ रहिस। तेखर सेती मराठा मन सन् 1740 ई. म सतनामी के जमीन अउ गौटयानी खेती ल लूट नगाके जमींदार बनगे। सतपंथी के जिनगी म बरोड़ा (संकट) आते रहिस।
भारत म बंटाये छोटे-छोटे रियासत के राजा अपन-अपन सुवारथ साधे बर एक दूसर के बइरी बने रहिन मउंका के फायदा उठावत अंग्रेज धीरे-धीरे अपन पांव देस भर म लमात छत्तीोसगढ़ आ धमकीन। गुरू घासी दास जी के जनम अंगेज अउ मराठा शासन के संधि काल रहिस।
छतीसगढ़ के किसान, बनिहार लुट-खसोट म एक कोती हीनहर होगे रहिन, त दूसर कोती छत्तीोसगढ़ी समाज म जात-पात, छुआछूत, सवर्ण, अवर्ण, रूढ़िवाद, पाखण्ड, पंगहा, टोना-जादू के बोलबाला रहिस। मया-पिरीत खउरा माते राहै। मराठा, पिण्डारी मन अइताचार तो करबे करीन, संग म पंडित, पुरोहित, पटेल अऊ जमींदार जइसन मातबड़ मन घलु लूट म पाछू नई रहिन। गइया गति होत लोगन के रक्षा खातीर सतगुरागी गुरूघासी दास बाबा जी के अवतरण समे के मांग रहिस।
गुरू घासी दास बाबा जी ज्ञानी, ध्यानी, त्यागी-तपसी दुःख-पीरा ले उबरइया, सत के संदेसिया अवतार लेके आइस अऊ बुद्ध असन तप-तपस्या म आत्मज्ञान पा के मानव जाति म सामाजिक क्रांति लाइस, जीवन म सतकर्म के बोध कराइस। अटके, भटके, डरे, थके ल पार नकाइस, कांटा-खुटी म छबड़ाये मनखे ल रद्दा बताइस, आसा अऊ बिसवास जगाइस। मनखे के करू-कस्सा मिटाके नवा-नवा नता-गोता, संगी-सजन, हितवा-मितवा जोरिस। मनखे-मनखे ल एक बरोबर बताके सतनाम! के अलख जगाइस।
अमरौतिन के कोरा म
छत्ती्सगढ़ के माटी म
गिरौदपुरी के छाती म
गुरू घासी जनम धरे न… (पुरानिक लाल चेलक)




मध्यप्रदेश ल अलगियाके 01 नवम्बर सन् 2001 म छत्तीीसगढ़ राज बनिस। इही नवा राज छत्तीेसगढ़ म नवा जिला बलौदाबाजार-भाटापारा (रायपुर) तहसील कसडोल के ग्राम गिरौदपुरी म छत्तीासगढ़िन माता अमरौतिन के कोख ले 18 दिसंबर सन् 1756 म मांघी-पुन्नी के छिटिक अंजोरी पहाती रथिया म बालक घासीदास के अवतरण होइस। पिता के नाव मांहगूदास रहिस। किसान परवार म जनमें बालक सतनाम पंथ के प्रवर्तक, युग-पुरूश अऊ छत्तीिसगढ़ के महान विभूति म गिने जाही, अइसन कल्पना कोनो नई करे रहिन होही।

सतनामी जाति म जनमें, पले, बढ़े बालक घासीदास गरीबी ल देखिस, भोगिस, छत्तीासगढ़ी समाज म उच्चनीच भेदभाव ल परखीस। भूखमरी, शोशण, ईरखा, छल-छद्म ले जुझीस। फेर कोनो ल कहे नई सकै। कलेचुप राहय, अकेल्ला म गुनान करै, कछु सुझै न रद्दा दिखै। उमर बाढ़त गिस, मन बियाकुल राहै, अशांत राहै, खेले खाय के उमर म समाज के दुर्दशा देख चिन्ता, म बुड़े दिखै। पिता मांहगू दास देख के संसो म परगे, भटकत मन ल बचाये बर अपन संग बुता-काम म लगा दै, तभो ले मन शांत नई होइस। पारा-परोस के सियान मन सुझाव दिन, घासी दास के बिहाव कर दे, गर म गेरूवा बंधा जही तहां अपने आप काम बुता धर लिही। बालक घासी के बिहाव सिरपुर निवासी अंजोरी दास के दुलौरिन बेटी सफूरा संग होगे। समे के धारा संग बोहात गृहस्थी के बसे ले चार संतान के पिता बनगे। तभो ले बियाकुल मन, शांति नई पाइस। पत्नी सफूरा के मोह-माया घलु रोके नई सकीस। दुःख हे त दुःख म मुक्ति के मारग घलु हे, सदी के पहली गौतम बुद्ध राजपाठ छोंड़के निकलगे। इतिहासकार मन के बताती म गाँव वाले के संग मन के शांति खातीर जगन्नाथ तीरथ यात्रा बर निकल जथे। सांरगढ़ पहुँचे पाये रहिस तैइसने मन म कछु सोचिस-बिचारिस, तुरते लहुट के सोनाखान जंगल के महराजी गाँव तीर छाता पहाड़ (छातानुमा शीला) उपर बइठिस तेहर उठबे नई करीस। कौंआताल के चंदनिहा गौटिया के सौधिया मन गिरौदपुरी के लोगन ल बताइन कि घासीदास छाता पहाड़ उपर बइठे हे। छः महीना के बीते ले गाँव गिरौद के मनखे मन घासी के आरो पाइन। छाता पहाड़ ले उठके गिरौद ले दू धाप दुरिहा अंवरा-धंवरा के खाल्हे म तप म बइठगे। इही ओ ठउर ए, तपस्या करत बाबा घासीदास जी ल आदि पुरूश (सत के स्वरूप) के दर्शन से सतनाम रूपि अमरित मिलीस। आत्मज्ञान मिले से हिरदे म सत के अंजोर बगरगे सबो समस्या के हल निकलेगे। पंथी गीत म गाथैं –
अंवरा-धौंरा पे़ड़ म धुनी रमाये हो
सतनाम पुरूश के दर्शन पाये हो ……………. ।

डॉ. ग्राण्ट सरकारी गजेटियर (1870) म लिखे हवय 28 दिसबर 1820म बिसाल जन समूह श्रद्धा म हाथ जोड़ें दिव्य पुरूश के दर्शन के खातीर डोंगरी के डहर कोती टकटकी लगाए देखत रइथे। गुरू घासीदास छः महीना के कठिन तपस्या के बाद गिरौद जंगल से निकल के आइस देखते देखत बाबाजी के जयकार म आकास गूंजे लगथे। सकलाये अपार जनसमूह ल दर्शन अउ असीस देत छत्तीसगढ़ी म दैवी संदेश देथे। इही उपदेश सतनाम के सात सिधांत के रूप म माने जाथे। ये संदेश है –

1 सत ल मानौ, सतनाम सार हे, जम्मो प्राणी के घट-घट म रमे हे।
2 ईश्वर निराकार हे, मूर्तिपूजा आडम्बर ए, सबो जीव उपर दया करौ।
3 सत, अfहंसा के मारग म चलौ, बलि देना मुरख पन ए येला बंद करौ।
4 दारू, मांस, भक्षण त्यागौ, सादा अन्न म पबरित विचार जनमथे।
5 मनखे-मनखे एक बरोबर ए, भेदभाव ल छोंड़व।
6 पर स्त्री ल माता मानौ, नारी सृश्टि के जननी होथे।
7 गाय भंइस ल नागर झन जोतबें।



गुरू घासीदास जी के बताये सात सिधांत सतनाम के मूल -मंत्र ए। ये सिधांत के पालन करे ले दुःख भरे जीवन से बचे जा सकथे।
अंग्रेज लेखक चाल्स ग्रान्ट के गजेटियर (1870) पहली एतिहासिक लेखन ए। जेमा गुरू घासीदास जी के बारे म घाद अकन लिखे हे। ग्रान्ट के लिखे घटना ल इतिहासकार मन प्रमाणित माने हे। बाबा गुरू घासीदास जी ल लेके ग्रान्ट ह लिखे हे कि – ‘‘इस अंचल के असल आश्चर्य अभी तक धरती के नीचे दबे हुए है। गुरू घासीदास उनमें से एक है जिन्होंने छत्तीेसगढ़ के भूमि दासो को जगाया और जाति प्रथा को समाप्त कर समतावादी समाज की रचना की।’’
राजा मोहन राय के सतीप्रथा आंदोलन के पहली छत्ती्सगढ़ अंचल म सामाजिक क्रांति के धजा गुरू घासी दास बाबा जी फहरा चुके रहिस। नारी जाति के सम्मान खातीर अपन उपदेश म कहिन – ‘‘पर नारी माता सनमान, नारी सृश्टि के जननी होथे, दाई-दाई होथे मनखे हो या पशु। जेन गाय के बछरू मर गेहे ओकर दुध झन पियव, गाय भैंस ल नागर मत जोंतव, अवइया ल रोकव झन, जवइया ल टोकव झन एक धुवा मारे तेनो तोर बरोबर आय (गर्भ मं पलते शिशु भी तुम्हारे समान है) अइसने बलिप्रथा के विरोध करत अमृतवाणी म कहे हे – ‘‘जीव मारब, fहंसा करब महा पाप आय।’’ बाबाजी के बताये उपदेश अऊ सिधांत ल भक्तगण अपन हिरदे म बसाइके सतपंथी कहाइन।
गोकुल प्रसाद (1921-24) के मुताबिक बालक बुधारू ल सांप डस दे रहिस। बालक घासीदास के भक्ति पूर्ण प्रार्थना अऊ इलाज ले बुधारू ल जीवन दान मिलगे। तउन समे ले चमत्कारी बालक के रूप म छत्तीासगढ़ अंचल म सोर उड़गे। कतको चमत्कारी कथा ‘‘गुरू घासीदास चरितम्’’ नामक संस्कृत महाकाव्य म पढ़े जा सकथैं जइसे – ‘‘बिना आगी पानी के भोजन बनाना, गरियार बइला से संवाद अउ नागर चलाना, पाँच काठा धान ल पाँच एकड़ म बों के भारी फसल लेना, समाधीरत छः महीना ले धरती म दफन पत्नी सफूरा ल जीवन दान देना, दंतेश्वरी देवी से संवाद’’ ये सब चमत्कार ले गुरू घासी दास अवतार के रूप म माने जाथे। एकर से ये बात के प्रमाण मिलथे कि दलित जाति म जनमें गुरूघासी के चमत्कार बिना नमस्कार कहाँ ले होतिस ? जबकि मानव समाज म जातिवाद छूआछूत, रूढ़िवाद, पाखण्ड जइसन बेमारी जड़ जमाये रहिस।




भोपाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ.. हीरालाल शुक्ल अपन पुस्तक ‘‘गुरू घासीदास संघर्श समन्वय और सिधांत’’ म लिखे हवै – ‘‘ गुरू घासी दास दलितों की विपन्न स्थिति से बहुत दुःखी थे। उच्च अध्यात्मिक विरासत के विद्यमान होने के बावजूद दलित शोषण के शिकार थे तथा उनका जीवन गुलामों से भी ज्यादा बद्तर हो गया था। उन्होने अपनी आत्मा को मार डाला था और माननीय सम्मान को पूरी तरह भूल गये थे। दलितों के राजनीतिक प्रशासनिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, नैतिक तथा अध्यात्मिक उत्थान के लिए गुरू घासी दास ने एक लम्बा संघर्श (1820 से 1830) किया था और इस रूप में भारत के स्वाधीनता आंदोलन के वे पुरोधक थे। भारतीय समाज में उनके जैसा आज तक दलितों को कोई मसीहा पैदा नही हुआ। डॉ.. शुक्ला जी आगू डहर लिखथैं कि- उच्चकोटि के व्यवहारीवादी तथा तथ्यान्वेशी ही नहीं थे अपितु महान दार्शनिक भी थे, जिन्होने विश्व के लिये एक नया ‘माडल’ दिया जिन्होंने नैतिकता के तेज बहाव से जनता की रक्षा की, जिन्होंने भारत में नवजागरण की प्रथम रश्मि फैलायी। उनका नवजागरण निरक्षर, किसान, मजदूरों के परिश्रम से सींचा गया था।
‘‘सत म धरती खड़े, सत म खड़े अगास
सत ले सृश्टि उपजे, कह गये घासी दास।’’

आदि युग ले सत के महिमा के बखान होत हे – धरती म जतेक संत, महात्मा, रिसि-मुनि अवतरिन, सत ल महान बताइन। सत ही संसार म सर्वोत्‍तम हे, सत ल कोनो काल म नकारे नई जा सकै। गीद गायन मन पंथी गीत म गाथैं –

‘‘सतनाम! सतनाम! सतनाम! सार
गुरू महिमा अपार, अमरित धार बोहाइदे
होई जाही बेड़ा पार, सत के महिमा लखाइदे।’’
सत ल धारण करना, सतमारग म चलना, आचार-विचार बेवहार म लाना ही सतनाम धर्म ए। छः महीना के कठोर तपस्या ले गुरू घासीदास जी सत से साक्षात्कार होइस। आगू चलके पूरा मानव समुदाय ल सतनाम रूपि अमरित पिलाइस। चाल्स ग्रान्ट के अनुसार – ‘‘गुरू घासीदास एक युग पुरूश थे। सन् 1870 में ही उन्हें देवदूत और एक मसीहा के रूप में भक्तगण मानने लगे थे। ‘‘बाबा जी के क्रांतिकारी विचार, आदर्श, सतज्ञान से जनसमूह खींचे चले आइन। लाखो केे समूह म अपन जात-धरम तेज के गुरू घासीदास बाबा के चलाये सतनाम पंथ म fमंझरगे अउ बाबा के बताये रद्दा धरलिन। भंडारपुरी गुरू घासीदास जी के कर्मभूमि माने जाथे, fजंहा ले सतनाम रावटी शुरू होके पूरा छत्ती्सगढ़ म सन् 1820 से 1830 तक जनक्रांति सतनाम आंदोलन चलिस। रूढ़ि, पाखण्ड, छुआछूत, मूर्तिपूजा ल छोड़के सामाजिक समता खातीर सेत धजा के खाल्हे अवइया भगत मन के संख्या दिनो-दिन बाढ़त गिस। येकर सेती छत्तीासगढ़ म सतनाम पंथी आज लाखो म हवयं।




आधुनिक युग के महान क्रांतिकारी संत गुरू घासीदास बाबा जी दुर्गम ल सरल, सामाजिक जीवन सादगी अउ सतकर्म म रहे बर लोकभाशा, छत्तीिसगढ़ी म अनगिनत उपदेश दे होही फेर ओ बखत लिखित साहित्य नई रहे ले अंग्रेज लेखक अउ पंथी गीत से जउन संदेश मिलथेे, इही संदेश बियालिस अमृतवाणी के रूप म प्रचलित हवय। रावटी म देये संदेश हे –
1 पंडित हो या पुरोहित, मुल्ला हो या मौलवी, साटीदार हो या भंडारी, महंत हो या संत सब ल संते जान।
2 जहाँ तोर-मोर, मोर-तोर के प्रपंच हवै उंहा ओ ह नइये अउ fजंहा ओ भेद ह नइये उहां ओ ह रथै।
3 मोर संत मन मोला काकरो ले बड़े झन कइही, नई त मोला हुदेसना म हुदेसन आय।
4 मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, संतद्वारा बनावन मोर मन भावै नई , तोला बनायेच बर हे त जलाशय बना, कुँआ बना, धर्मशाला बना, अनाथालय बना न्यायालय बनवा दुर्गम ल सुगम बना।
5 मंद झन पी, पीना हे त ज्ञान के अमृत पी, पीना हे त गाय के दुध पी, धरती माता के पसीया ल पी।
6 तैहा अपन बर बारह महीना के खरचा सकेल ले तब भक्ति-भाव करबे, नइते झन कर।
7 गीता पढ़, पुरान पढ़, कुरान पढ़, बाइबिल पढ़ ले, सुन ले, मुंदई के मुंदई ले, नई मुंदई तेला कहिबे झन।
8 मोला देख, तोला देख, बेरा देख, कुबेरा देख। जउन हे तउन ल बांट बिराज के खाले।
9 करिया हो चाहे गोरिया, बड़का हो या छोटका, ए पार के होय, चाहे ओ पार के होय मनखे-मनखे आय।
10 दाई ह दाई आय, मुरही गाय के दुध झन पीबे।
11 मझनिया नागर झन जोतव। भोजन खेत म झन ले जावव, गउ माता के सेवा करौं।
12 जीव मारव, fहंसा करब महा पाप आय।
13 जान के मरइहा तो मारब, कोनो ल सपना म मरइहा तो मारब आय।
14 पान, परसाद, नरियर सुपारी चढ़ावन सब ढोंग आय।
15 मरे के बाद पीतर मनई, मोला बइहई लागथे।
16 मांस ल झन खाबे, मांस ल कोन काहय? ओकर सहिनांव तक ल झन खाबे।
17 घमण्ड का के करथस ? सब नसा जाही।
18 झगरा के जर नई होय, ओखी ह खोखी होथे।
19 पराया धन, तोर कौड़ी आय।

20 दान के देवइया पापी, दान के लेवइया पापी।
21 बइरी संग घलो पिरीत रखौ।
22 पानी पीहू छान के, गुरू बनाहू जान के।
23 अपन ल हीनहर झन मानहू।
24 जइसे खाबे अन्न, तइसे होही मन।
25 मोर हीरा सबो संत के आय, अउ तोर हीरा ह मोर बर कीरा आय।
26 पहूना ल साहेब सनमान जानिहौ।
27 सगा के जबर बइरी सगा होथे।
28 इही जनम ल सुधारना सांचा ए।
29 सबर केे फल मीठा होथे।
30 दान झन मांगहू न उधार लेहू।
31 एक धुवा मारे तेनो तोर बरोबर आय।
32 दाई-ददा अउ गुरू ल सनमान दव।
33 दीन-दुःखी के सेवा सबले बड़े धरम ए।
34 काकरो बर कांटा झन बों।
35 जतेक हव सब मोर संत आव।
36 चुगरी चारी ले नव कोस दुरिहा रइहा।
37 रीस अउ भरम ल तियागथे, तेकर बनथे।
38 सत अउ ईमान म अटल रइहु।
39 अवइया ल रोकव झन जवइया ल टोकव झन।
40 तोर पीरा ओतकेच आय जतका मोर पीरा ह।
41 धन ल उड़ा झन, बने काम म खरचा कर।
42 ए धरती तोर ए, येकर सिंगार कर।




छत्तीोसगढ़ी भाखा म परथंम धर्म उपदेशक गुरू घासीदास बाबा जी हवैं। गुरूजी के महिमा पंथी गीत म गाये जाथे, पंथी गीत भक्ति-भाव ले तरबतर होथे।बाबाजी के बताये सात सिधांत अउ बियालिस अमृतवाणी म दुःख के निदान हें। कोनो ल दुःख-पीरा बियायै न डर-भय लागै, भइगे! जीवन दर्शन, उपदेश ल जाने, समझे अउ धरे बर लागही। मनखे के जिनगी संवर जाही।

अनिल जाँगड़े ‘गौंतरिहा’
ग्राम – कुकुरदी पो0 बलौदाबाजार
जिला – बलौदाबाजार-भाटापारा (छ.ग.)
पिन – 493332
मो. न. – 8435624604



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